प्रागैतिहासिक काल की कला | 3 parts of prehistoric times

प्रागैतिहासिक काल की कला

मनुष्य के पृथ्वी में जन्म लेने के बाद ही प्रागैतिहासिक काल की कला की शुरुआत होती है।
उस काल के मनुष्य ने खुद को वर्षा , गर्मी , शीत व खतरनाक पशुओ से बचने के लिए अनेक प्रयत्न किये उसने लगभग छः लाख वर्ष में पत्थर के औजार व हथियार बनाये जिनसे वह शिकार करता, फिर अपनी भूख मिटाता। वह अनगढ़े पत्थरो को काटकर शिकार के लिए आवश्यक हथियार बनता।

प्रागैतिहासिक काल की कला

कई हजार वर्षो के पश्चात वह अपनी सुरक्षा के लिए पर्वतों की कन्दराओं व गुफाओ में रहने लगा । तथा इन गुफाओ को गर्म व प्रकाशित करने के लिए उसने जानवरो की चर्बी तथा लकड़ी को जलाया , उसने अपने जीवन की अनेक घटनाये जैसे – शिकार करना व पशुओं की छवि का अनुभव , रंगों से तथा टांकी या नुकीले पत्थर से गुफाओ की दीवारों व समतल शिलाओं पर चित्रित कर दिया।

इस प्रकार उसने अपने जीवन की अनेक घटनाओ को गुफाओं की खुरदुरी दीवारों तथा फर्श पर चित्रण कर के इतिहास बना दिया। इस समय मनुष्य ने विशेष रूप से लकड़ी, पत्थर तथा मिट्टी का प्रयोग किया था , इसी वजह से इस काल को पाषाण युग कहा जाता है।

प्रागैतिहासि काल (पाषाण युग) को तीन भागों में विभाजित किया गया है –

1. पूर्व पाषाण युग (पुरा प्रस्तर युग) (Paleolithic Age or Mesolithic Age)30,000 ई. पूर्व से 25,000 ई. पूर्व तक।
2. मध्य पाषाण युग (मध्य प्रस्तर युग) (Middle Stone Age or Mesolithic Age)25,000 ई. पूर्व. से 10,000 ई. पूर्व तक।
3. उत्तर पाषाण युग (नव प्रस्तर युग) (Neolithic Age)10,000 ई. पूर्व से 5,000 ई. पूर्व या 3000 ई. पूर्व तक।

1. पूर्व पाषाण युग – ( Pre-Stone Age )

पूर्व पाषाण युग – इस युग को भू विद्वानों ने तीस हजार से पच्चीस हजार वर्ष ईसा पूर्व का माना है। जिसमे आदि मानव प्रकृति द्वारा निर्मित गुफाओं में रहता थे। इस युग के अवशेष बहुत कम प्राप्त हुए है तथा अधिकतर अवशेष दक्षिणी- भारत के क्षेत्रों से मिले हैं। इसी वजह से भूगर्भ शास्त्री दक्षिणी भारत को ही देश का सबसे प्राचीन भाग मानते है। क्युकी यही से अनेक प्राचीन स्थलों की खोज हुई है। इस समय के मनुष्य को क्वटींजाइट (Quartizite) मनुष्य कहा गया। क्युकी अनेक क्वटींजाइट यंत्र मद्रास सिटी (चेन्नई), गुंटूर जिले के अंगोला और कुडापा नामक स्थानों में प्राप्त हुए हैं। पूर्व पाषाण युग का मानव दक्षिणी भारत में मद्रास सिटी (चेन्नई) के पास, चिंगलेपुत, अंगोला तथा कुडापा क्षेत्र तक सीमित रहा।

चित्रकला – भारत में पूर्व पाषाण युग की चित्रकला के उदाहरण अभी प्राप्त नहीं हुए हैं।
औजार – इस युग में मुख्य रूप से लकड़ी, पत्थर व हड्डी के बने हुए औजार व हथियार प्राप्त हुए है जिनकी आकृतियाँ अनगढ़ी है तथा आकर मोटे व भद्दे है।

खोज – भारत में सबसे पहले ब्रुसफुट नामक विद्वान ने पूर्व पाषाण युग के औजार की खोज मद्रास के पास पल्लावरम् नामक स्थान में की। इसके बाद पाषाण युग के अन्य स्थान जहा से औजार व हथियार मिले हैं। निम्न प्रकार से है – सोआ, नर्मदा, साबरमती नदी की घाटियाँ, उड़ीसा, मैसूर एवं मद्रास आदि।

कुछ ही वर्ष पहले लगभग 25,000 वर्ष पुराने चित्र मध्यप्रदेश में मोरेना जनपद के पहाड़गढ़ शियोरपुर कला क्षेत्र में मिले है जिनकी खोज – ‘प्रोफेसर डी.पी.एस. दारिकेश’ ने की है, यह चित्र गेरू व सफेद रंगो में बने हुए हैं। जिनके विषय शिकारी व शिकार हैं।

2. मध्य पाषाण युग – ( Middle Stone Age )

मध्य पाषाण युग – मध्य पाषाण युग के बहुत कम अवशेष प्राप्त हुए है। इस समय का मानव भी पत्थर का ही प्रयोग करता था लेकिन उसने अपने हथियारों व औजारों को अधिक सुडौल व ज्यामितीय रूप दिया। तथा उसने मिट्टी के बर्तन बनाने की कोशिस भी की। सिन्ध, गुजरात, कश्मीर, आन्ध्रप्रदेश व मध्यप्रदेश आदि प्रदेशों में मिले परिष्कृत हथियारों के आधार पर हम कह सकते है कि मध्य पाषाण युग का मानव सुंदरता ,विकास व सहजता के लिये लगातार प्रयास कर रहा था।

3. उत्तर पाषाण युग – ( Neolithic Age )

उत्तर पाषाण युग – पूर्व पाषाण युग का मानव कुडापा तथा मद्रास सिटी (चेन्नई) के क्षेत्र तक सीमित रहा परन्तु उत्तर पाषाण युग का मानव सारे भारतवर्ष में फैल गया तथा बेलारी उसका प्रमुख केन्द्र था ।

अवशेष – उत्तर पाषाण युग के अवशेष अधिकतर बेलारी के आस-पास के स्थानों से प्राप्त हुए हैं। इस युग का गढ़ा हुआ पत्थर का एक गोल यंत्र नर्मदा नदी की घाटी से प्राप्त हुआ है तथा इसके साथ ही नर्मदा घाटी में दरियाई घोड़े व अन्य पशुओं की हड्डियाँ भी प्राप्त हुई हैं। इसी प्रकार का एक प्राचीन यंत्र गोदावरी नदी की घाटी से भी प्राप्त हुआ है। मिर्जापुर, नागपुर की पहाड़ियों, असम, बुन्देलखण्ड, गाजीपुर तथा विन्ध्यांचल की कैमूर पर्वत श्रेणियों में प्राचीन कला के अवशेष प्राप्त हुए हैं।

उद्योगशालाएँ – अब मानव, पशुपालन व कृषि जैसे धंधों को अपनाने लगा था और मिट्टी के कलात्मक बर्तनो का प्रयोग भी प्रारम्भ हो गया था, जो उसने चाक पर बनाये थे। इस समय मानव की यंत्र निर्माण करने की उद्योगशालाएँ दक्षिणी भारत में प्राप्त हुई हैं। इस काल में मनुष्य पत्थरों के यंत्रों पर पालिश करता था।

चित्रकला – सर्वप्रथम उत्तर पाषाण युग के मानव ने चित्रकला का प्रयोग किया था और इस समय के प्राप्त चित्रकला के उदाहरण विभिन्न स्थानों पर सुरक्षित हैं। कुछ स्थानों पर हिरौंजी के टुकड़े, सिल और पत्थर प्राप्त हुए हैं जिन पर हिरौंजी को पीसा जाता था। इससे प्रमाणित है कि हिरौजी का रंग के रूप में प्रयोग किया जाता था। बेलारी तथा कई अन्य स्थानों में पत्थर तथा रेखाओं को खोदकर चित्र बनाये गये हैं। उत्तर-पाषाण युग के मानव ने सर्वप्रथम चित्रकला का प्रयोग किया और आज भी उसकी चित्रकला के उदाहरण विभिन्न स्थानों में सुरक्षित हैं।

उत्तर पाषाण युगीन मानव के घुमक्कड़ स्वभाव में भी अन्तर आया। उसने अब गाँव बसाना शुरू कर दिया था। उसके जीवन की घटनाओ से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह अपनी आगे की पीढ़ियों के लिये एक उन्नत समाज का निर्माण कर रहा था। प्रागैतिहासिक काल में उत्तर पाषाण युग के मानव ने भारत के सैकड़ों स्थानों पर चित्रावशेष छोड़े हैं। अतः यहाँ पर इस युग की चित्रकला के प्रमुख उदाहरण हमें , वाडनाड, हरनीहरन, सिंघनपुर, मिर्जापुर तथा विख्याचल, बुढारपरगना, रामगढ़, बेलारी, बिल्लासरंगम, एडकल, बुन्देलखण्ड आदि स्थानों पर प्राप्त होते हैं।

भारत के प्रागैतिहासिक कला केंद्र

इस युग की चित्रकला के प्रमुख कला केंद्र निम्न प्रकार से है – बेलारी, बाडनाड, एडकल, होशंगाबाद, सिंहनपुर, बुंदेलखण्ड, बघेलखण्ड (विन्ध्याचल), मिर्जापुर, रायगढ़, हरनीहरन, बिल्लासरंगम, बुढ़ार, परगना आदि स्थानों में प्राप्त होते हैं।

FAQ

Q- प्रागैतिहासिक कला का विषय क्या है ? Ans- प्रागैतिहासिक कला का मुख्य विषय शिकार के द्रश्य हैं

Q- भारत के प्रागैतिहासिक कला केंद्र ? Ans-इस युग की चित्रकला के प्रमुख कला केंद्र निम्न प्रकार से है – बेलारी, बाडनाड, एडकल, होशंगाबाद, सिंहनपुर, बुंदेलखण्ड, बघेलखण्ड (विन्ध्याचल), मिर्जापुर, रायगढ़, हरनीहरन, बिल्लासरंगम, बुढ़ार, परगना आदि स्थानों में प्राप्त होते हैं।

Q- प्रागैतिहासिक कला के चित्र कहां पाए जाते हैं ? Ans- बेलारी, बाडनाड, एडकल, होशंगाबाद, सिंहनपुर, बुंदेलखण्ड, बघेलखण्ड (विन्ध्याचल), मिर्जापुर, रायगढ़, हरनीहरन, बिल्लासरंगम, बुढ़ार, परगना आदि स्थानों में प्राप्त होते हैं।

Q- प्रागैतिहासिक कला की विशेषता ? Ans- भारत के सबसे प्राचीन सभ्यता की कला को दर्शाती है यही इसकी सबसे बड़ी है।

Q- प्रागैतिहासिक काल का जनक कौन है? Ans- ब्रूस फुट को भारतीय प्रागैतिहासिक कालीन इतिहास का पिता कहा जाता है।

Q- प्रागैतिहासिक काल के कितने काल हैं? Ans- प्रागैतिहासिक काल (पाषाण युग) को तीन भागों में विभाजित किया गया है – 1. पूर्व पाषाण युग (पुरा प्रस्तर युग) (Paleolithic Age or Mesolithic Age)30,000 ई. पूर्व से 25,000 ई. पूर्व तक।
2. मध्य पाषाण युग (मध्य प्रस्तर युग) (Middle Stone Age or Mesolithic Age)25,000 ई. पूर्व. से 10,000 ई. पूर्व तक।
3. उत्तर पाषाण युग (नव प्रस्तर युग) (Neolithic Age)10,000 ई. पूर्व से 5,000 ई. पूर्व या 3000 ई. पूर्व तक।

Q- प्रागैतिहासिक स्रोत कौन कौन से हैं ? Ans- इन स्त्रोतों में इमारतें, मंदिर, स्मारक, मूर्तियाँ, मिट्टी से बने बर्तन तथा चित्रकला प्रमुख है।

Q- प्रागैतिहासिक लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था ? Ans- प्रागैतिहासिक लोगों का मुख्य व्यवसाय शिकार करना था।

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