किशनगढ़ शैली | किशनगढ़ शैली के चित्र व विशेषताएं | बनी – ठनी

किशनगढ़ शैली

किशनगढ़ शैली का परिचय – राजस्थानी चित्रकला में ‘ किशनगढ़ शैली ‘ का अपना एक विशेष स्थान माना जाता है इसे मारवाड़ शैली की प्रमुख चित्रशैली भी कहा जाता है विद्वान ‘ एरिक डिकिन्सन और डॉ . फैयाज़ अली ने ही किशनगढ़ चित्रशैली को प्रकाश में लाया तथा स्वर्गीय एरिक डिकिन्सन अलीगढ़ विश्वविद्यालय और राजकीय कॉलेज लाहौर में अंग्रेजी के प्रोफेसर भी थे ।

सन् 1943 ई . में जब वह मेयो कॉलेज अजमेर में भ्रमण के लिये आये थे तब उन्होंने किशनगढ़ राजघराने की चित्रकला को देखा । नागरीदास की बनी – ठनी का सौन्दर्य प्रसिद्ध किशनगढ़ चित्रशैली किशनगढ़ राज्य की पहचान है।

किशनगढ़ की स्थापना

राजा किशनसिंह ने किशनगढ़ राज्य की स्थापना की । यह जोधपुर के राजा उदयसिंह के सोलह पुत्रों में से आठवें पुत्र थे , वह अपने अन्य भाइयो से छोटे थे इसी कारण से उनके उत्तराधिकारी होने की संभावना नहीं थी परन्तु वह वीर थे अतः उसने सैठोलौव नामक स्थान को जीतकर उसे अपने नाम से किशनगढ़ बनाया ।

किशनगढ़ की स्थिति

मुगल सम्राट ‘ जहाँगीर ‘ ने किशनसिंह को किशनगढ़ का ‘ स्वामी ‘ स्वीकार किया था । तथा उन्हें महाराजा की उपाधि दी थी ।महाराजा किशन सिंह के राज्य में कलात्मक कार्यों को विशेष संरक्षण प्राप्त था ,यही कारण था की यह सब आगे चलकर अपनी प्रभावशीलता दिखते हुए किशनगढ़ शैली को एक स्वतंत्र शैली के रूप में स्थापित किया। वीर पराक्रमी राजा किशन सिंह को 40 वर्ष की आयु सन् 1615 ई में उनका कत्ल कर दिया गया । जब वह अजमेर में मारवाड़ के राजा एवं अपने भाई ‘ सूरसिंह ‘ के दीवान ‘ गोविन्दसिंह ‘ के कैम्प में थे।

किशनसिंह के पश्चात् किशनगढ़ के तीन उत्तराधिकारी हुये सहसमल ,जगमल तथा हरी सिंह ,ये तीनों भाई थे। इनके समय के कुछ चित्र उपलब्ध हैं । हरीसिंह के पश्चात् किशनगढ़ चित्रशैली के स्वरूप के निर्माण में ‘ राजा रूपसिंह , मानसिंह , राजसिंह तथा इनके पुत्र महाराजा सावंतसिंह का विशेष योगदान था । इन शासकों की अभिलाशाएँ , साहित्य प्रेम तथा कृष्ण की अनन्य भक्ति में थी जिसके परिणामस्वरूप किशनगढ़ जैसे छोटे से राज्य ने कला के क्षेत्र में विशेषता स्थापित किया ।

किशनगढ़ शैली के चित्र ( प्रमुख चित्र )

किशनगढ़ चित्रशैली को उत्कृष्ट स्वरूप प्रदान करने का श्रेय तीन व्यक्तियों को है
1 – कवि
2 – चित्रकार
3 – भक्त और कलाप्रेमी ‘ राजा सावंतसिंह ‘
इनके आश्रय में यह कला उत्कर्ष को प्राप्त हुई । किशनगढ़ की कलात्मक गतिविधियाँ इस कारण खिल उठीं कि असाधारण सौन्दर्य वाली कृतियों का निर्माण हुआ।

किशनगढ़ शैली के चित्रों के विषय

किशनगढ़ शैली के चित्रों के विषय कृष्ण – राधा के रतिभावो के अनेक आयामों से चित्रण व दर्शन ही किशनगढ़ चित्रशैली के प्रमुख विषय हैं । राधा – माधव की प्रेम लीला , प्रिया – प्रियतम का मधुर मिलन तथा भाव चित्रण ही किशनगढ़ कलाकारों को प्रिय रहा है । लेकिन इसके आलावा कृष्ण – भक्त कवियों की रचनाओं से भी प्रेरित होकर भागवतपुराण , गीत- गोविन्द , रुक्मिणीहरण , दरबारी वैभव , नागरीदास के पद आदि का भी चित्रांकन हुआ । किशनगढ़ शैली में उत्सव , नौका विहार , प्रेम और प्रकृति के विषय विशेष रहे हैं , जिन पर कलाकारों ने अपना कौशल दिखाया।

किशनगढ़ शैली बनी ठनी का चित्र

 बनी - ठनी  ( किशनगढ़ शैली )
बनी – ठनी (राधा रानी ) चित्रकार – निहालचन्द्र

बनी – ठनी को महाराजा सावंतसिंह की प्रिया कहा गया है इन्ही के समय में बनी – ठनी जो की राधा रानी का चित्र है चित्रित हुआ जिसे चित्रकार ‘ मोरध्वज निहालचन्द्र ने बनाया । ‘ बनी – ठनी अपने अद्वितीय रूप सौन्दर्य के कारण रूप – चित्रण का आदर्श बन गयी । कहा जाता है की नागरीदास की कविताओं को आधार बना कर बनी – ठनी के रूप सौंदर्य को चित्रित किया गया था

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किशनगढ़ चित्र शैली की विशेषताएं

प्रकृति चित्रण

प्रकृति चित्रण – झील , पहाड़ , उपवन , पशु – पक्षिय व प्राकृतिक परिवेश किशनगढ़ शैली के चित्रकारों के मुख्य विषय रहे है । वहां के चित्रकारो ने प्रकृति को करीब से देखा तथा अलंकारिकता को अपनाया है । नदी की लहरों में चलती नौकाएँ भी अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक रूप में चित्रित की गई हैं । पानी की लहरों को दर्शाने के लिये चाँदी का प्रयोग किया है । विस्तृत झीलों के सुखद तालाबों में कमल एवं केलि के मध्य क्रीड़ा करते हुए – हंस , बत्तख , बगुला , सारस , वक्र और जलमुर्गाबी को अंकित किया गया है ।

किशनगढ़ शैली में घने वृक्षों का चित्रण भी बारीकी से किया गया है वृक्षों पर पक्षियों का अंकन सुन्दर है । विशेष रूप से जामुन ,चम्पा ,केला , मोलश्री ,कदम्ब ,कदली , चमेली ,आम्र आदि वृक्षों को चित्रित किया है , तथा इन पर खेलते हुए बंदर ,मोर , तोता दर्शाये हैं ।

प्रागैतिहासिक काल की कला

हाशिये

हाशिये – किशनगढ़ चित्रों में हाशिये गुलाबी रंग से बनाये गए है लेकिन कुछ जगहों में हमे वह हरे रंगों के खत में भी बने मिलते हैं ।

रात्रि चित्रण

रात्रि चित्रण – किशन गढ़ के चित्रकारों ने रात्रि के दृश्यों को अत्यधिक प्रभावपूर्ण बनाया , उन्होंने गहरी पृष्ठभूमि में दीपकों की झिलमिलाहट पीले रंग के द्वारा उकेरी तथा काले व नीले मिश्रित रंग से आकाश बनाया है ।

आभूषण तथा वस्त्र

आभूषण तथा वस्त्र – किशनगढ़ शैली के अधिकांश चित्रों में स्त्रियों का पहनावा घेरदार चुन्नटदार लहँगा , छोटी बाँहे , बड़े तथा खुले हुये गले वाली ऊँची तथा कसी हुई चोली , आगे पारदर्शी छपी चंदेरी की ओढ़नी है । गले , माथे , हाथों तथा कमर में आभूषण पहने , नाक में बेसरि ( नाक का आभूषण ) को पहने दर्शाया है , कहीं – कहीं स्त्रियों को साड़ी पहने भी दर्शाया है । उदाहरणार्थ- ‘ कवि युवराज और बनी – ठनी ‘ नामक चित्र में बनी ठनी को साड़ी पहने चित्रित किया गया है ।

पुरुषों को मुगल मोहम्मदशाही झूलते लम्बे पारदर्शक जामे या पायजामा पहने दर्शाया है । जामे के साथ कमर में पटका और सिर पर मूंगिधा या श्वेत हीरे – मोती जड़ित ऊँची पगड़ी , जिसमें झब्बा लटका रहता है , भी बनाई गई है । पुरुषों को धोती पहने भी चित्रित किया गया है , जिसका ऊपरी भाग पारदर्शक बनाया है ।

नौका विहार

नौका विहार – नौकाओं का चित्रण कलाकार ने किशनगढ़ नगर को झील के तट पर होने के कारण किया है । नौका विहार के चित्रों में लाल रंग से छोटी तथा कहीं – कहीं तो लम्बी – लम्बी नौकाओं का चित्रण किया गया है ।

रेखा

रेखा – किशनगढ़ शैली के चित्रों की रेखाएँ कोमल , बारीक ( महीन ) और भावपूर्ण हैं । रेखाओं में प्रवाह तथा गति है । भाँह तथा बालों को बारीक – बारीक रेखाओं के द्वारा बनाया गया है । बाद के चित्रों में काली रेखाओं का प्रयोग किया गया है ।

पृष्ठभूमि

पृष्ठभूमि – इस शैली में अधिकतर ऊँचे क्षितिज का अंकन किया गया है जिससे चित्र में गहराई का आभास होता है । मुख्य रूप से गहरे हरे रंग से घने तथा दूर तक फैली हुई वनस्पति , चन्द्रमा , तारा मंडल , चांदनी रात , आकाश में नीले – काले मिश्रित रंग की लम्बी क्षैतिज तूलिका , तथा फव्वारे इत्यादि पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किये गए हैं ।

पुष्टि मार्ग

पुष्टि मार्ग – इस शैली के चित्रों में पुष्टि मार्ग का अनुसरण किया गया है । चित्रकार ने भगवान के सौन्दर्य की भक्ति में विस्मृत होकर अपनी आत्मा और परमात्मा का प्रतीक क्रमशः राधा और कृष्ण को माना है । इस शैली के चित्र जीते – जागते हैं और उनमें आत्मा की सच्ची अभिव्यक्ति है ।

कागज

कागज – चित्र कागज पर लघु एवं विशाल दोनों रूपों में बने हैं । बड़े चित्र 15 इंच चौड़े एवं 19 इंच लम्बे हैं ।

नारी सौन्दर्य

नारी सौन्दर्य – किशनगढ़ शैली की सबसे प्रमुख विशेषता नारी का सौन्दर्य है , लम्बा व पतला चेहरा जो कोमलता का भाव प्रदर्शित करते हैं , लम्बी तथा नुकीली नासिका , ऊँचा तथा पीछे की ओर ढलवाँ ललाट , कमसिन बाला की तरह लज्जा से झुकी हुई , लम्बे बदन वाली , गोरा रंग , कमल नयन , नेत्रों की काली रेखाएँ कान की ओर बढ़ती बनाई गई हैं, जो तिरछी तथा धनुषाकार भी हैं , यह कनपटी पर बहुत ऊँची रहती हैं । लम्बी पतली बाँहें एवं मेहन्दी से रचे हाथ और अंगुलियाँ , पैरों में महावर / रंग , बालों की लट कान के पास झूलती हुई , लम्बे केश लहराते हुये । यह निःसंदेह राधा रानी ( बनी – ठनी ) की ही शैली का आदर्श रूप है ।

मानव आकृतियाँ

मानव आकृतियाँ – इस शैली की मानव आकृतियाँ भी राजस्थान के अन्य कला केन्द्रों से भिन्न हैं । विशेष रूप से स्त्री आकृतियाँ बहुत कोमलांगी और लतिका के समान लचकदार , पतली , लम्बी और छरहरे शरीर वाली बनायी गई है । किशनगढ़ शैली के चित्रों में पशु – पक्षी मेवाड़ शैली के समान ही बनाये गए हैं । 

किशनगढ़ शैली के चित्रकार | प्रमुख चित्रकार

चित्रकार – किशनगढ़ शैली का प्रसिद्ध व प्रमुख चित्रकार निहालचंद्र को मना जाता है अन्य विशेष चित्रकारो के नाम निम्न प्रकार से है –
सीताराम , अमीरचन्द , तुलसीदास , छोटू , बदनसिंह , सवाईराम , नानकराम , रामनाथ , भंवरलाल , जोशी , लालडी दास , धन्ना , मोरध्वज निहालचन्द , सूरजमल , सूरध्वज , अमरू।

किशनगढ़ शैली के लघु चित्र

इस शैली के लघुचित्रों को सुन्दर एवं प्रभावशाली बनाने के लिए चित्रकारों ने प्रकृति के अन्य चीजों जैसे – अट्टालिकाओं , केले के वृक्षों और कमलदलों ,कुंजों से झाँकती सी श्वेत मुंडेरों , फव्वारों , का भी सहारा लिया है । ये चित्रण किशनगढ़ शैली के विषय को एक अत्यन्त सजीव विस्तार देते हुए प्रतीत होते हैं । अतः किशनगढ़ चित्रों में श्वेत – श्याम , नीले हरित वर्णों का प्राधान्य रहा है । पीला ( प्योड़ी ) , हरा ( जंगाल ) , नीला ( नील ) , काला ( काज़ल ) , लाल , गेरू , ( सिन्दूर ) तथा सिंगरफ एवं सोने व चाँदी के रंगों का प्रयोग हुआ है । हल्के गुलाबी रंग का प्रयोग शरीर में एवं आकाश में हल्के नीले रंग का प्रयोग आकाश में सुखद और शान्तिपूर्ण लगता है ।

किशनगढ़ शैली का स्वर्णिम युग

महाराजा रूपसिंह का योगदान इस शैली के विकास की आधारशिला कहा जाता है । राजा रूपसिंह ने किशनगढ़ से लगभग दस मील दूर ‘ रूपनगर ‘ को अपनी नई राजधानी बनाया तथा इन्होने चित्रकारों से कृष्ण व राधा की प्रेम – लीलाओं के अनेक चित्रों का निर्माण करवाया। कृष्ण भक्ति , कृष्ण के बाल-किशोर एवं युवा सभी रूपों की प्रेम लीलाओं का चित्रण करवाया क्योंकि इन लीलाओं के श्रवण , कीर्तन एवं दर्शन से ही मुक्ति संभव है , ऐसा उनका विश्वास था । इन्होने कल्याण राय का मंदिर एवं उनकी मूर्ति का निर्माण करवाया।

राजा रूपसिंह का उत्तराधिकारी राजा मानसिंह स्वयं कवि तथा कला प्रेमी था। वैष्णव भक्त होने के कारण चित्रों में भी वैष्णव भक्ति से सम्बद्ध चित्रों का निर्माण ही इन्होंने अपने राजकाल में करवाया । किशनगढ़ के कपड़ा – भण्डार में इनके समय में चित्रित कुछ चित्र विद्यमान हैं ।

राजा मानसिंह के पुत्र महाराजा राजसिंह धर्मपरायण , कवि , काव्य रसिक एवं चित्रकार थे , इन्होंने 33 ग्रन्थ रचे और चित्रण कार्य का अत्यधिक विकास किया और प्रसिद्ध चित्रकार ‘ सूर्यध्वज निहालचन्द ‘ को अपनी चित्रकला का प्रबन्धक बनाया महाराजा राजसिंह के पुत्र सावंतसिंह ( नागरीदास ) ने जन्म से साहित्य , संगीत एवं चित्रकला से परिपूर्ण कलात्मक वातावरण में बड़े हुए तथा यह संस्कृत , फारसी तथा मारवाड़ी व संगीत की शिक्षा ली। इसके साक्षी चित्र किशनगढ़ दरबार के निजी संग्रह ‘ में उपलब्ध हैं ।

सावंतसिंह , जो ‘ नागरीदास ‘ उपनाम से प्रसिद्ध थे , इनके गुरु श्री रणछोड़ जी थे । राज्य वैभव में इनकी रूचि नहीं थी तथा कला , संगीत एवं साहित्य में रूचि होने के कारण नागरीदास ने शीघ्र ही स्वयं को राधा – कृष्ण की माधुर्य भक्ति में लीन कर लिया। इनके कलात्मक व्यक्तित्व ने किशनगढ़ शैली को एक नवीन रूप प्रदान किया। किशनगढ़ में 18 वीं सदी के मध्य बने चित्र एक ही शैली के प्राप्त होते हैं । राधा – कृष्ण की प्रेमलीला इन चित्रों का प्रमुख विषय है ।

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FAQ

Q : -किशनगढ़ शैली की दो विशेषताएं बताइए ?
Ans : 1 – किशनगढ़ चित्रों में हाशिये गुलाबी रंग से बनाये गए है लेकिन कुछ जगहों में हमे वह हरे रंगों के खत में भी बने मिलते हैं ।
2 – किशन गढ़ के चित्रकारों ने रात्रि के दृश्यों को अत्यधिक प्रभावपूर्ण बनाया , उन्होंने गहरी पृष्ठभूमि में दीपकों की झिलमिलाहट पीले रंग के द्वारा उकेरी तथा काले व नीले मिश्रित रंग से आकाश बनाया है ।

Q – किशनगढ़ शैली का प्रसिद्ध चित्रकार कौन था ?
Ans : किशनगढ़ शैली का प्रसिद्ध चित्रकार निहालचंद्र को मना जाता है

Q – किशनगढ़ शैली के चित्रकारों के नाम ?
Ans : किशनगढ़ शैली के चित्रकारो के नाम निम्न प्रकार से है –
सीताराम , अमीरचन्द , तुलसीदास , छोटू , बदनसिंह , सवाईराम , नानकराम , रामनाथ , भंवरलाल , जोशी , लालडी दास , धन्ना , मोरध्वज निहालचन्द , सूरजमल , सूरध्वज , अमरू ।
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मेवाड़ शैली
उदयपुर शैली
देवगढ़ शैली
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प्रागैतिहासिक काल की कला

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