पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर

जीवन परिचय

पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर
पं० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर
 नाम पं० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर
जन्म 18 अगस्त सन् 1872
जन्म स्थान गोवा के समीप बेलगाँव नामक स्थान
मृत्यु 21 अगस्त, 1931
पिता पं ० दिगम्बर गोपाल पलुस्कर
माता गंगा देवी
गुरु पं ० बालकृष्ण बुआ इचलकरंजीकर
पुत्र डी. वी. पलुस्कर
रचनाएँ संगीत बाल-बोध, संगीत-तत्त्वदर्शक,
वल्पालाप – गायन, भजनामृतलहरी, राग-प्रवेश
स्थापना गंधर्व महाविद्यालय की स्थापना
शिष्य डी. वी. पलुस्कर, पं. विनायक राव पटवर्धन,
पं. ओंकारनाथ ठाकुर, पं. नारायण राव

” संगीत क्षेत्र में एक दूसरा महान् नाम पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जी का है , जिनके शिष्य सम्पूर्ण उत्तर भारत तथा बम्बई में फैले हुए हैं । उनकी ‘ रघुपति राघव राजाराम ‘ धुन प्रसिद्ध हो गई । ” तो आइए ! अब उन्हीं की जीवनी पर विचार प्रस्तुत करें । 

जन्म स्थान

जन्म स्थान – स्व ० पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर का जन्म 18 अगस्त सन् 1872 में गोवा के समीप बेलगाँव नामक स्थान पर हुआ था । आपके पिता का नाम पं ० दिगम्बर गोपाल पलुस्कर था और माता का नाम गंगा देवी था । पं ० दिगम्बर अच्छे कीर्तनकार थे तथा यह महाराष्ट्रीय ब्राह्मण परिवार सुखी था । 

संगीत की शिक्षा और बाल्यकाल

शिक्षा और बाल्यकाल पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर की स्कूली शिक्षा प्रारम्भ हुई ही थी कि दुर्भाग्यवश दीपावली के दिन आतिशबाजी से आपकी आँखें खराब हो गयीं और डाक्टर की सलाह पर इनकी स्कूली शिक्षा बन्द कर देनी पड़ी । अन्य उपाय न देख इन्हें संगीत सिखाना प्रारम्भ किया गया । इनके संगीत के गुरु पं ० बालकृष्ण बुआ इचलकरंजीकर थे । 

जीवनयापन

जीवनयापन – पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर पयाप्त संगीत शिक्षा के उपरान्त उन्हें मिरज के महाराज के यहाँ सम्मान सहित आश्रय मिला । किन्तु एक भोजन में इनके गुरु को आमंत्रित न किये जाने से आपके हृदय को चोट लगी । अत : आपने भारतीय संगीत तथा संगीतज्ञों की दशा सुधारने के निश्चय से यात्रा प्रारम्भ कर दी । सर्वप्रथम आप सितारा गये , फिर बड़ौदा , काठियावाड़ , जूनागढ़ आदि कई स्थानों पर घूमते हुए आप पंजाब पहुँचे । सभी स्थानों पर आपका सम्मान हुआ । कई रियासतों में आपको रोकने का प्रयत्न किया गया किन्तु आप कहीं भी न ठहरे ।

गंधर्व महाविद्यालय की स्थापना

गंधर्व महाविद्यालय की स्थापना – सन् 1901 में पंजाब में आपने एक गांधर्व विद्यालय खोला । विद्यालय जमने लगा था कि पिता की मृत्यु का समाचार आया । बढ़ते हुए कार्य में गड़बड़ी होने के भय से आपने घर जाना भी स्थगित कर दिया । अब आर्थिक कठिनाई सामने आई । किन्तु कई राजा महाराजाओं से धन की सहायता मिल गई  उत्साहित होकर पंडित जी ने बम्बई में भी एक संगीत विद्यालय खोला जिसका थोड़े ही दिनों में अपना निजी भवन बन गया । किन्तु फिर आर्थिक दशा बिगड़ जाने से प्रकाशित होने वाली संगीत पत्रिका भी बन्द हो गई तथा विद्यालय भवन भी कर्ज में चला गया । इस अवधि में पंडित जी के मन में विरक्ति आ गई थी । आपने भड़कीले वस्त्र व ठाठबाट त्यागकर लम्बी कफनी पहन ली , बाल बढ़ा लिये और रामभक्ति में रम गये । आपने नासिक में ‘ राम – नाम आधार आश्रम ‘ खोला ।

कार्य

 कार्य पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जी ने मुख्य रूप से क्रियात्मक कार्य ही किया । उन्होंने  उच्च संगीत को जनसाधारण तक पहुंचा दिया । संगीत को सभ्य समाज में स्थान मिला । संगीत कला को समझा जाने लगा । उसे उच्च दृष्टि से देखा जाने लगा । उनके कार्य को हम निम्न रूप में बाँट सकते हैं – 

( 1 ) स्वरलिपि – पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जी ने एक स्वरलिपि का आविष्कार किया । यह लिपि कुछ कठिन होने पर भी अधिक उपयोगी थी । यह आज भी प्रचलित है ।

पुस्तकें (रचनाएँ)

( 2 ) पुस्तकें – पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जी ने छोटी – बड़ी सब मिलाकर लगभग 50 पुस्तकें लिखीं । कई पुस्तकें छोटी होने पर भी लाभदायक हैं । पुस्तकें मुख्यतः क्रियात्मक संगीत पर ही हैं । 

( 3 ) संगीत विद्यालय – पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जी ने लाहौर तथा बम्बई आदि स्थानों पर विद्यालय खोलकर संगीत शिक्षा में भारी योगदान दिया । विद्यालयों में विद्यार्थी प्रायः निःशुल्क ही शिक्षा पाते थे । 

( 4 ) सम्मेलन – पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जी ने कई स्थानों पर संगीत सम्मेलन कराये । सम्मेलन बहुधा कांग्रेस अधिवेशन के साथ – साथ होने लगे थे , अत : इससे अधिक व्यक्तियों को लाभ हुआ ।

पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर के शिष्य

विष्णु दिगम्बर पलुस्कर के शिष्य – में डी. वी. पलुस्कर, पं. विनायक राव पटवर्धन, पं. ओंकारनाथ ठाकुर, पं. नारायण राव ।

( 5 ) शिक्षा – पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जी ने जी ने कई विद्यार्थियों को संगीत शिक्षा दी । उनके लगभग 100 शिष्यों में कुछ तो उच्च कलाकार हैं । अन्य सभी लोग संगीत अध्यापन तथा संगीत प्रचार में लगे हुए हैं । गांधर्व विद्यालय मंडल तथा समिति इनके ठोस कार्य 

( 6 ) प्रचार – पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर जी ने जी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य था संगीत का क्रियात्मक प्रचार । आपने संगीत को भगवत उपासना के रंग में बदल दिया । उनके गीत राम – भक्ति तथा राष्ट्रीय भावनाओं से ओत – प्रोत थे । उनका प्रिय कीर्तन ‘ रघुपति राघव राजाराम , पतित पावन सीता राम ‘ आज भी लोकप्रिय है । इस महान संगीत – प्रचारक को कभी भुलाया नहीं जा सकता । इन्होंने क्रियात्मक संगीत में जो कार्य किया , उससे संगीत की बहुत उन्नति हुई । उन्होंने नि : स्वार्थ भाव से संगीत की सेवा की तथा संगीत के लिए सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया ।

डॉ ० पं ० श्रीकृष्ण नारायण रातांजनकर जी ने अपनी श्रद्धांजलि में लिखा है ; ” पंडित जी ने गायन – वादन कला की विजय पताका समस्त देश में फहराकर उसके वैभव का , उसके सौन्दर्य का , उसकी माधुरी का परिचय जनता को भली भाँति कराकर उस पर से काला पर्दा हटा दिया और सभ्य समाज में संगीत की उपासना करने की प्रेरणा जागृत की । ” उत्तर भारतीय संगीत द्वारा राष्ट्रसेवा करने वाले व्यक्तियों में पं ० विष्णु दिगम्बर जी एक महान राष्ट्र सेवक , एक चरित्रवान पुरुष थे । भारतीय जनता पडित जी की सदैव ऋणी रहेगी । “

मृत्यु

पं ० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर संगीत की सेवा करते – करते सन् 1931 में , पली रमाबाई तथा इकलौते पं ० दत्तात्रय पलुस्कर (डी. वी. पलुस्कर) को दु:ख में छोड़कर स्वर्ग सिधार गये ।

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