हिन्दी लोकोक्तियाँ | कहावतें | proverbs in hindi

हिन्दी लोकोक्तियाँ | कहावतें

हिन्दी लोकोक्तियाँ , कहावतें | proverbs अर्थ
जो बोले सो कुंडा खोलेयदि कोई मनुष्य कोई काम करने का उपाय बतावे और उसी को वह काम करने का भार सौपाजाये।
जेठ के भरोसे पेटजब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है और उसकी स्त्री का पालन-पोषण उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं।
जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्धकुपात्र पुत्रों के लिए कहते हैं जो अपने पिता के जीवित रहने पर उनकी सेवा-सुश्रुषा नहीं करते, पर मर जाने पर श्राद्ध करते हैं।
जैसा देश वैसा वेशजहाँ रहना हो वहीं की रीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए।
जिसकी लाठी उसकी भैंसशक्ति अनधिकारी को भी अधिकारी बना देती है, शक्तिशाली की ही विजय होती है।
जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे जिसका जो काम होता है वही उसे कर सकता है।
जो अति आतप व्याकुल होई, तरु छाया सुख जाने सोईजिस व्यक्ति पर जितनी अधिक विपत्ति पड़ी रहती है उतना ही अधिक वह सुख का आनंद पाता है।
डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोईथोड़ी पूँजी पर झूठा दिखावा करना।
जो गुड़ देने से मरे उसे विषय क्यों दिया जाएजो मीठी-मीठी बातों या सुखद प्रलोभनों से नष्ट हो जाय उससे लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए।
जोरू चिकनी मियाँ मजूरपति-पत्नी के रूप में विषमता हो, पत्नी तो सुन्दर हो परन्तु पति निर्धन और कुरूप हो।
जोगी काके मीत, कलंदर किसके भाईजोगी किसी के मित्र नहीं होते और फकीर किसी के भाई नहीं होते, क्योंकि वे नित्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं।
जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवारजैसे बाबास्वयं झूठे हैं वैसे ही उनके परिवार वाले भी हैं।
जीभ भी जली और स्वाद भी न पायायदि किसी को बहुत थोड़ी-सी चीज खाने को दी जाये।
जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँटयदि वस्तु के नष्ट हो जाने की आशंका हो तो उसका कुछ भाग खर्च करके शेष भाग बचा लेना चाहिए।
जो करे लिखने में गलती, उसकी थैली होगी हल्कीरोकड़ लिखने में गलती करने से सम्पत्ति का नाश हो जाता है।
जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गएजो लोग दरबारी या परदेसी होते हैं उनका धर्म नष्ट हो जाता है और वे संसार के कर्तव्यों का भी समुचित पालन नहीं कर सकते।
डायन को भी दामाद प्यारादुष्ट स्त्रियाँ भी दामाद को प्यार करती हैं।
जैसा ऊँट लम्बा, वैसा गधा खवासजब एक ही प्रकार के दो मूर्खों का साथ हो जाता है।
जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे विदेशनिकम्मे आदमी के घर रहने से न तो कोई लाभ होता है और न बाहर रहने से कोई हानि होती है।
जैसी तेरी तोमरी वैसे मेरे गीतजैसी कोई मजदूरी देगा, वैसा ही उसका काम होगा।
जैसे को तैसा मिले, मिले नीच में नीच, पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीचजो जैसा होता है उसका मेल वैसों से ही होता है।
जिसे पिया चाहे वही सुहागिनजिस पर मालिक की कृपा होती है उसी की उन्नति होती है और उसी का सम्मान होता है।
जैसा मुँह वैसा तमाचाजैसा आदमी होता है वैसा ही उसके साथ व्यवहार किया जाता है।
जुत-जुत मरें बैलवा, बैठे खाय तुरंगजब कोई कठिन परिश्रम करे और उसका आनंद
जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचेजैसा वेश हो उसी के अनुकूल काम करना चाहिए।
जो धावे सो पावे, जो सोवे सो खोवेजो परिश्रम करता है उसे लाभ होता है, आलसी को केवल हानि ही हानि होती है।
जोरू टटोले गठरी, माँ टटोले अंतड़ीस्त्री धन चाहती है औरमाता अपने पुत्र का स्वास्
जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचारसंसार में मनुष्यों की प्रकृति-प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है।
जिसके राम धनी, उसे कौन कमीजो भगवान के भरोसे रहता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होती।

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