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रस की परिभाषा –
रस का शाब्दिक अर्थ है निचोड़, काव्य में जो आनन्द आता है वह ही काव्य का रस है । काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है । उसे काव्य की आत्मा कहा गया है ।
संस्कृत में कहा गया है कि ” रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम् “
अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है ।
रस के अंग –
1- स्थाई भाव – स्थाई भाव रस का पहला एवं सर्वप्रमुख अंग है । भाव शब्द की उत्पत्ति ‘ भ, ‘ धातु से हुई है । जिसका अर्थ है संपन्न होना या विद्यमान होना मानव हृदय में स्थायी रूप में विद्यमान रहने वाले भाव को स्थायी भाव कहते है ।
सामान्यतः स्थाई भावों की संख्या अधिक हो सकती है किन्तु आचार्य भरतमुनि ने स्थाई भाव आठ ही माने हैं –
रति, हास्य, शोक, क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा, और विस्मय ।
2- विभाव – स्थायी भाव को जगाने वाले और उद्दीप्त करने वाले कारण विभाव कहलाते है । विभाव दो प्रकार के होते है-
( क ) आलम्बन |
( ख ) उद्दीपन ।
( क ) – आलम्बन विभाव – आलंबन का अर्थ है आधार या आश्रय अर्थात् जिसका अवलंब का आधार लेकर स्थाई भावों की जागृति होती है उन्हें आलंबन कहते हैं । सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि जो सोए हुए मनोभावों को जागृत करते हैं वह आलंबन विभाव कहलाते हैं ।
जैसे : श्रृंगार रस के अंतर्गत नायक – नायिका आलंबन होंगे , अथवा वीर रस के अंतर्गत युद्ध के समय में भाट एवं चरणों के गीत सुनकर शत्रु को देखकर योद्धा के मन में उत्साह भाव जागृत होगा ।
( ख ) उद्दीपन विभाव – उद्दीपन का अर्थ है उद्दीप्त करना भड़काना या बढ़ावा देना जो जागृत भाव को उद्दीप्त करें वह उद्दीपन विभाव कहलाते हैं ।
जैसे : श्रृंगार रस के अंतर्गत – चांदनी रात, प्राकृतिक सुषमा, विहार, सरोवर आदि तथा, वीररस के अंतर्गत शत्रु की सेना, रणभूमि, शत्रु की ललकार, युद्ध वाद्य आदि उद्दीपन विभाव होंगे |
3- अनुभाव – स्थायी भाव के जाग्रत होने तथा उद्दीप्त होने पर आश्रय की शारीरिक चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती हैं ।उदाहरण – वन शेर को देखकर डर के मारे काँपने लगना , भागना आदि ।
अनुभाव पांच प्रकार के होते हैं– जो निम्न प्रकार से है
1 . कायिक
2. वाचिक
3. मानसिक
4. सात्विक
5 आहार्य ।
1 . जैसे : -श्रृंगार रस के अंतर्गत नायिका के कटाक्ष, वेशभूषा या कामउद्दीपन, अंग संचालन आदि तथा वीर रस के अंतर्गत नाक का फैल जाना , भौंह टेढ़ी हो जाना, शरीर में कंपन आदि अनुभव कहे गए हैं।
4- संचारी भाव – संचारी भावों की संख्या 33 मानी गई है | जाग्रत स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए कुछ समय के लिए जगकर लुप्त हो जाने वाले भाव संचारी या व्यभिचारी भाव कहलाते है ।
जैसे – वन में शेर को देखकर भयभीत व्यक्ति को ध्यान आ जाये कि आठ दिन पूर्व शेर ने एक व्यक्ति को मार दिया था । यह स्मृति संचारी भाव होगा ।
33 संचारी भाव इस प्रकार है |
शंका या भ्रम , सफलता , निर्वेद , स्तब्ध , चिंता , स्वप्न , उन्माद , बीड़ा , जड़ता , गर्व , विषाद , निद्रा , स्वप्न समर्थ उग्रता , व्याधि , मरण , आलस्य , दैन्य , हर्ष , आवेद , उन्माद , त्रास , धृति , वितर्क आदि ।
रस के प्रकार | स्थायी भाव
रस के ग्यारह भेद होते है- परन्तु भरत मुनि के अनुसार रसों की संख्या 9 मानी है । वर्तमान में रसों की संख्या 11 मानी जाती है ,श्रृंगार रस में ही वात्सल्य और भक्ति रस भी शामिल हैं |
रस व उनके स्थायी भाव
रस के ग्यारह भेद निम्नलिखित है-
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टी जी टी कला पुराने प्रश्न पत्र – 1999 old art question paper -1999
( 1 ) श्रृंगार रस | रति |
( 2 ) हास्य रस | हास |
( 3 ) करुण रस | शोक |
( 4 ) रौद्र रस | क्रोध |
( 5 ) वीर रस | उत्साह |
( 6 ) भयानक रस | भय |
( 7 ) बीभत्स रस | जुगुप्सा |
( 8 ) अदभुत रस | आश्चर्य विस्मय |
( 9 ) शान्त रस | निर्वेद या निर्वृती |
( 10 ) वत्सल रस | रॅति |
( 11 ) भक्ति रस | अनुराग ( प्रेम ) |